क्रोध की अनुभूति से हर एक मनुष्य परिचित है। पर सरल रूप से कोई भी यह स्वीकार नहीं करना चाहता। और यदि हम करें भी तो हमारे पास अपने क्रोध को सही साबित करने के कई कारण हमारे तूरीण में होते हैं। किसी ने हम से कुछ कह दिया, किसी ने हम से कुछ नहीं कहा, हमारी बात नहीं मानी, हमें किसी ने पूछा नहीं, बाॅस तो नेत्रहीन है; हमारी मेहनत देखता ही नहीं, बीवी हम को समझती नहीं और पति देव हमारे ऊपर ध्यान नहीं देते। कुल मिला कर सब हमें गुस्सा दिलाने में निपुण हैं। कई तो इस विषय में PhD किये बैठे हैं। पर यहां हम यह नहीं देख पाते कि यह सारे कारण हमारे बाहर हैं और क्रोध हमारे भीतर उपज रहा है। मानें हमारे क्रोध की चाबी निरंतर हाथ बदलती रहती है।
ऐसा भी सुनने में आता है कि भई क्रोध बहुत आवश्यक है। बिना क्रोध करे कोई काम नहीं करता, कोई काम नहीं होता। लातो के भूत बातों से मानते हैं भला। ऐसी स्थिति में फिल्म का वह हीरो याद करें जो क्रोध न कर के मात्र क्रोध का अभिनय करता है। अति आवश्यक स्थितियों में आप भी करिये। अगर हम नाग भी हैं तो डसना सदैव आवश्यक तो नहीं; फुंकारने से भी तो काम बन सकता है।
क्रोध से ऊपर उठने के लिए क्रोध को निकट से जानना ज़रूरी है। ऋषि मुनियों ने, संतों ने, महान पुरुषों ने क्रोध के ऊपर समय समय पर प्रकाश डाला है। आइए देखें उनके कुछ अनमोल विचार।
1. क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकङे रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं
– गौतम बुद्ध
2. कोई भी क्रोधित हो सकता है- यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस कि बात नहीं है और यह आसान नहीं है.
– अरस्तु
3. क्रोध पर यदि काबू ना किया जाये, तो वह जिस चोट के कारण उत्पन्न हुआ उससे से कहीं ज्यादा हानि पहुंचा सकता है
– लुसिउस अन्नेईस सेनेसा
4. सबसेअच्छा योद्धा कभी नाराज नहीं होता है।
– लाओ त्सू
5. एक क्रोधित व्यक्ति अपना मुंह खोल लेता है और आँख बंद कर लेता है
– कैटो
6. क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म होता है
– पाईथागोरस
7. आग में घी नहीं डालनी चाहिए अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए। कठोर वाणी अग्निदाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुंचाती है।
– चाणक्य
8. आक्रोश जहर पीने की तरह है और फिर उम्मीद है कि यह आपके दुश्मनों को मार देगा
– नेल्सन मंडेला
9. आपके क्रोध का मूल कारण अगला व्यक्ति नहीं, बल्कि आप हैं-यदि आप इस तथ्य का अनुभव कर लें तो आपकी समझ में आ जाएगा कि क्रोध करना कितनी बड़ी मूर्खता है
– सद्गुरु
10. क्रोधी मनुष्य यह नहीं समझ पाता कि क्या कहना चाहिए तथा क्या नहीं. क्रोधी के लिए कुछ भी अकार्य एवं अवाच्य नहीं है.
– वेदव्यास
11. क्रोध अत्यन्त कठोर होता है. वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं.
– प्रेमचन्द
12. हम जैसा सोचते हैं बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी ही है, हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। सम्पूर्ण संसार हमारे अंदर समाया हुआ है, बस जरूरत है तो चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की
– स्वामी विवेकानंद
क्रोध एक भावना है। साहस क्रोध को नकारने में नहीं उसे अन्य किसी भावना की तरह स्वीकार करने में है। उसकी जड़ तक जाने में है। साहस क्रोध से हर बार हारने में नहीं अपितु हर बार उससे ऊपर उठने के प्रयत्न में है । क्रोध हमारे अंदर है। शांति भी।